शुक्रवार, 6 अगस्त 2021

बिश्नोई समाज में सांड‌ प्रथा का सच | क्या वाकई होती थी सांड प्रथा

 

बिश्नोई समाज में सांड‌ प्रथा का सच | क्या वाकई होती थी सांड प्रथा


बिश्नोई समाज में नस्ल सुधार के लिए सांड प्रथा होती थी? Bishnoi samaj questions on Quora ?


आपको पता हो के बिश्नोई समाज की स्थापना मात्र  500 वर्ष पूर्व ही हुई है। इससे पूर्व बिश्नोई समाज को अपनाने वाले लोग जाट, राजपूत व अन्य जाति/सम्प्रदायों से संबंध रखते थे। अगर सांड प्रथा बिश्नोई समाज में रही है तो निश्चित ही यह प्रथा बिश्नोई समाज के अस्तित्व में आने से पूर्व जाटों व राजपूतों में अवश्य रही होगी। अन्यथा ऐसे क्या कारण रहे होंगे जिससे कुछ लोगों की धार्मिक आस्था बदलने के साथ अचानक सांस्कृतिक परिवेश में सांड प्रथा जैसी कुप्रथा कैसे पनप सकती है।

गोकि मध्य सदी में मुस्लिम आक्रांताओं का बोलबाला था हिंदू धर्म के लोगों को जबरन मुस्लिम बनाया जा रहा था। वही मध्य सदी मैं ही मरुधरा के महान संत गुरु जांभोजी ने बिश्नोई पंथ की नींव रखी। बिश्नोई पंथ को अपनाने वाले लोग विद्रोही प्रवृत्ति के थे जिन पर मुस्लिम आक्रांता का कोई प्रभाव नहीं रहा। चुंकि उस वक्त मन और तन से सुदृढ़ लोग ही बिश्नोई समाज को अपनाने का सामर्थ्य जुटा पाए थे। तो जाहिर सी बात है बिश्नोई जेनेटिक सुदृढ़ता के चलते शारीरिक व मानसिक रूप से मजबूत होने के कारण दूसरे लोग ईर्ष्यावस एनकेन प्रकारेण बिश्नोईयों को नीचा के उद्देश्य से नित नई कहानियां गढ़ने लगे। इन कुटिल कहानियों में से एक है सांड प्रथा! जो बिना सर पैर की कोरी मिथक अफवाह मात्र है।

 विभिन्न धर्म समुदाय के लोगों के आस पास सैकड़ों वर्षो से बिश्नोई समाज के लोग रह रहे हैं क्या वो खुलेआम ऐसा कह सकते हैं कि फलां पड़ोसी के घर में यह प्रथा रही है। वहीं कुछ लालची लोगों ने भी आर्थिक लालच आकर पश्चिमी राजस्थान में आने वाले ट्रैवलर ब्लॉगर/लेखक आदि से इस मिथक प्रथा को साझा किया। कॉन्ट्रोवर्सी क्रिएट कर चर्चा में आने के लिए ब्लॉगरों व लेखकों ने इसे तूल दिया जबकि इस प्रथा पर लिखने के कारण जाने-माने लेखक खुशवंत सिंह नेे जयपुर में बिश्नोई समाज से माफी मांग चुके हैं।

क्यों सांड प्रथा का मिथक फैला कर तोड़ना चाहते थे बिश्नोई समाज


सांड प्रथा का दूसरा पहलू यह भी है कि बिश्नोई रंग-रूप, तन और मन सुदृढ़ है। वहीं 98% बिश्नोई, जाट समाज से बने हैं और 4 गौत्र की परम्परा आज भी है। इस कारण उस समय जो जाट विश्नोई बने अपने ही लोगों से जलते थे वह ऐसी अफवाह फैलाते थे ताकि बिश्नोईयों में आपसी फुट डाली जा सके और विश्नोई बने लोग पुनः जाट बन जाए।

सांड प्रथा के संदर्भ में कुछ लोगों का कहना है कि बिश्नोई समाज के 29 नियम में से एक
बेल बधिया न करना 
है अर्थात् गाय के बछड़े को किसी भी प्रकार से कृषि व बैलगाड़ी में प्रयुक्त करने के लिए खस्सी नपुंसक नहीं बनाएं। जबकि अन्य समाज के लोग वेलकम नपुंसक को बनाते हैं ताकि उसको खेत जोतने व बैलगाड़ी चलाने में काम ले सके। बिश्नोई उस समय बेल को नपुंसक ना बनाकर सांड बनाते थे इसलिए यह कहावत समाज पर जोड़ दिया।

चुंकि बिश्नोई लोग रूप-रंग, कद-काठी व शारीरिक और मानसिक रूप से सुदृढ़ होते हैं तो अच्छी नस्ल की संतान प्राप्ति के लिए किसी और समाज की स्त्री बिश्नोई से संतान के लिए सहवास करें यह बात तो समझ में आती है। हमारे गुण-धर्म ही ऐसा है कि हमसे विश्व सीख सकता है, प्रेरित हो सकता है। लेकिन कुछ बुद्धीहीन अगर ये बकवास करते हैतो उन्हें इतना तो समझ लेना चाहिए कि कभी सोना (बिश्नोई-स्त्री) भी अन्य गुणों की खोज में जंग लगे लोहे से प्रेरित होगा भला? यह मिथक प्रथा का बवंडर उन्हीं निर्लज्ज लोगो द्वारा उड़ाया गया है जिन्होंने सदियों तक अपनी बीवियां मुगलों को अय्याशी के लिए परोसी है। 

निष्कर्ष तो हम कह सकते हैं बिश्नोई समाज के संदर्भ में फैलाई गई नस्ल सुधार के नाम पर सांड प्रथा कोरी मृतक मिथक है यह है घृणा और नफरत फैलाने का कुकृत्य मात्र है।



Keywords -
  •  बिश्नोई राजपूत
  • बिश्नोई सांड प्रथा
  • बिश्नोई गोत्र लिस्ट
  • बिश्नोई इन पाकिस्तान
  • विश्नोई जाति वर्ग
  • बिश्नोई रीति रिवाज
  • बिश्नोई जनसंख्या
  • लॉरेंस बिश्नोई
  • बिश्नोई समाज क्या है?
  • बिश्नोई सांड प्रथा क्या है?
  • बिश्नोई समाज के 29 नियम कौन कौन से हैं?
  • बिश्नोई समाज की स्थापना कब हुई?
  • बिश्नोई समाज History in Hindi
  • गुरु जाम्भोजी History
  • गुरु जम्भेश्वर History
  • खेजड़ली बलिदान


सोमवार, 18 फ़रवरी 2013

इंटरनेट पर बिश्नोई राज

बिश्नोईज्म को विश्वपटल पर पहचान दिलाने में इंटरनेट एक सशक्त जरिया बनाहै। नेट पर बिश्नोईयों को हर किसी ने चाहा तथा सम्मान दिया है। विदेशियोंकी वेबसाइटों पर भी अबबिश्नोईज्म के बारे में देखने को मिल रहा है।बिश्नोईज्यम इस पहल की शुरुवाती वेबसाइट है। इस वेबसाइट पर बिश्नोईज्मके बारे में सम्पूर्ण जानकारी को सर्वप्रथमसंग्रहीत किया गया। इंटरनेटपर बिश्नोईज्यम को अपनी पहचान दिलाने के लिए ब्लॉग भी सशक्त माध्यम बनकरउभरे हैं, इंटरनेट पर बिश्नोईज्यम और साहित्य के प्रचारक तथा साहित्यकारइन माध्यमों से निरंतर जुड़ रहे हैं।बिश्नोईज्यम के वेबसाइट व ब्लॉग जोअभी तक सामने आएं हैं, उनमें बिश्नोईज्यम कीसभ्यता(वन्यजीव व पर्यावरणरक्षण), साहित्य एवं संस्कृति के साथ-साथ दूसरे विषयों की जानकारी भीदेखने में आती है।बिश्नोईज्यम के बारे में संपूर्ण जानकारियों कोप्रस्तुत करने वालीप्रमुख वेब साईट-बिश्नोईज्यम, विश्नोई नेट, मुक्ति धाम मुकाम, बिश्नोई समाज, महत्वपूर्ण ब्लॉगस :-The unofficial yet most popular blog on Bishnoism,विश्नोई, बिश्नोई कम्युनिटी, दी बिश्नोईज्यम, विश्नोई पेजदी बिश्नोईज्यम पेज, बिश्नोई न्यूज, धोरीमन्ना टेगलाइनऔर भी बहुतसे है।इंटरनेट पर बिश्नोईज्यम की जो साहित्यिकवेब-पत्रिकाएं सामने आई हैं, वे इस प्रकार है-अमर ज्योति, बिश्नोई संदेशजम्भ साधना आदि । जांभाणी साहित्य के प्रचार-प्रसार व देश विदेश में जांभाणी साहित्य संग्रहालयों की स्थापना हेतु जांभाणी साहित्य अकादमी की स्थापना की गई है। वन्यजीव रक्षा हेतु भी कई संस्थाएं कार्यरतहै ,जो है - अखिल भारतीय बिश्नोई जीव रक्षा संस्था, श्री जम्भेश्वर पर्यावरण एवंजीवरक्षा प्रदेश संस्था राजस्थान फेसबुक पर भी बिश्नोईयों को अत्यंत सम्मान मिला है। फेसबुक पर बिश्नोईयो का सूत्रपात करने के लिए वरिष्ठ साहित्यकार संतोष पुनिया का नाम गर्व से लिया जाता है। वहीं युवाओं के आइकन चौ. कुलदीप बिश्नोईकृपाशंकर पहलवान(बेनिवाल) और विश्व पर्यावरण सुरक्षा के लिए प्रेरणादायी कार्य करने वाले पर्यावरण प्रेमी खम्मुराम बिश्नोई भी इस क्षेत्र में सक्रिय है। पिछले 2 सालों से फेसबुक पर बिश्नोईयों की संख्या में इजाफा हो रहा है तथा संवाद की माध्यम पर्यावरण व वन्यजीव रक्षा बना है। फेसबुक पर मुख्यत: बिश्नोईज्यम के साहित्यिक पेज:- श्री गुरु जम्भेश्वर पेज, बिश्नोई हो? तो देखते ही लाइक करें, बिश्नोई धर्म, श्री गुरु जम्भेश्वर धाम जाम्भा, बिश्नोई कम्युनिटि Posted by: « The Tree Hugger »

मंगलवार, 1 जनवरी 2013

आओ मिलकर माँगे दुआएं

आओ मिल कर नए सालमें, माँगे यही दुआएं। प्यार मोहब्बत और अमन की, जग में चले हवाएं।। नदियों में बहती रहे, निर्मल जल की धारा। प्रदूषण से मुक्त रहें, पर्यावरण हमारा।। जड़ी बूटियां फूलें फलें, अमृत हो दवाएं। हर दिन हो खुशियों भरा, उत्सव सी निशाएं।। इस धरती की मिट्टी भी, उगले कोरा सोना। अंबर से अमृत बरसे, भर जाए कोना-कोना।। फल फूलों से वृक्ष सदा, लदे रहें भरपूर। हर चेहरा एक चाँद हो, हर जर्रा एक तारा।। दसों दिशा की खुशबू से, महके आलम सारा।। ::

The Bishnoism JAi Bishnoi
<

गुरुवार, 1 नवंबर 2012

ब्रह्म मुहूर्त में स्नान का महत्व -"""सेरा करो स्नान"""-

सेरा उठे सुजीव छाँण जल लीजिए, दातण कर करे सिनान जिवाणी जल कोजिये" बत्तीस आंखड़ी(वील्हाजी) । प्रातःकाल ब्रह्म मुहूर्त में उठकर सर्वप्रथम शौचादि क्रिया से निवृत होकर दांतुन करें, फिर छाँण कर जल ग्रहण करके स्नान करें। यहीं से जीवन गति प्रारंभ होती है। स्नान करने के पश्चात ही अन्य कोई घर का कार्य या पूजा पाठ हवनादिक हो सकता हैं। बिना स्नान किए तो कुछ भी शुभ कार्य नहीं हो सकता। रात्रि में हम लोग शयन करते हैं तो एक प्रकार की मृत्यु हो जाती हैं,बुरे स्वप्न आते हैं, आलस्य का आक्रमण हो जाता हैं जिससे शरीर अस्वस्थ, आलसी, कर्तव्यमुढ़ हो जाती हैं। कोई भी शुभ दिनचर्या नहीं बन पाती है। इन्हीं सभी शारीरिक दोषों की निवृति के लिए प्रातःकालीन स्नान का विधान किया हैं। प्रातःकालीन स्नान से शरीर शुद्ध पवित्र तथा स्वस्थ होगा तो इस शरीर में स्थित मन, बुद्धि आदि भी पवित्र होंगे तथा सभी कार्य सुरुचिपूर्ण तथा सफलतापूर्वक ही होंगे। शब्द नं. 104 के प्रसंग में गुरु जाम्भोजी ने वस्त्र, हाथी, घोड़ा, घी आदि के दान से भी अधिक महत्वपूर्ण स्नान को स्वीकार किया हैंक्योंकि दान का प्रभाव तो क्षणिक होता हैं किन्तु स्नानादिक पवित्र दिनचर्या का प्रभाव दिर्घकालीन होता हैं, इनसे जीवन निर्माण होता हैं। इस स्नान करने के नियम केकारण तो बिश्नोईयों को अन्य लोग स्नानी कहते हैं और बड़ी ही श्रद्धा की दृष्टि से देखते हैं। क्योंकि उन्हें मालूम है कि जो प्रातःकाल स्नान करेगा वह निश्चित ही परमात्मा का स्मरण, संध्या, हवनादिक शुभ कार्य करके उसके बाद वो अन्य कार्य करेगा। वह निश्चित ही धार्मिक व्यक्ति होगा तथा उनका अन्य लोगों से अधिक शरीर स्वस्थ रहेगा,प्रत्येक काम करने में सबसे आगे रहेगा। यही सभी कुछ एक स्नान के बदौलत से ही संभव हो सकती हैं। कुछ वर्षपूर्व तक इस स्नान के नियम का पालन अच्छी तरह से होता था। छोटे बच्चे को भी बिश्नोई के घर में बिना स्नान किए भोजन नहीं खिलाना जाता था, सभी के लिए स्नान करना अनिवार्य था। जिससे आगे चलकर आदत पड़ जाने से बिना स्नान किए भोजन नहीं कर सकते थे किन्तु इस समय कुछ शिथिलता नजर आ रही है। नियम की यह महत्वपूर्ण कड़ी यदि टूट जाएगी तो फिर यह श्रखला कैसे जुड़ पाएगी। अन्य शास्त्रकार इस नियम की महत्ता को नहीं देख पाए थे इसीलिए अधिक चर्चा का विषय नहीं बन पाया किन्तु जम्भदेवजी ने ठीक से पहचान करके अपने शिषयों के प्रति बनवाया था।

बुधवार, 31 अक्तूबर 2012

नवण-प्रणाम

हम हमारी जानकारी के अनुसार वर्णन करने की कोशिश करेंगे और आशा है कि यह सहायक होगी।नवण/निवण स्थानीय राजस्थानी शब्द है,नमन (झुक कर प्रणाम) नम्रता के साथ, जैस किहिन्दी में नमस्कार इसी का भाग है।इसलिए नवण/निवण करने से आश्य आदरपूर्वकअंहकार शुन्य भाव से प्रणाम करने से है।दूसरे राजस्थानी समुदायों में इसे निवणकरां सा कहते है।आपने देखा होगा कि कुछ लोग आदरपूर्वक अपने हाथ मिलाते है या जोङकर नवण-प्रणाम करते है। वास्तविकता में यह शारिरीकआदर का शब्द है।गुरु महाराज ने इस शब्द का प्रयोग कई शब्दों में किया है जैसे कि शब्द 23 व 30 वें शब्द में "निवीयेनवणी, खविए खवणी" से अभिप्राय यदि इस संसार में नमनकरने योग्य व्यक्ति से नमन करते हुए अर्थात निरभिमानी होते हुए क्षमा करने योग्यजगह पर क्षमाशील होते"पवणा पाणी नवण करंतो" परमपिता परमेश्वर सबमें स्वामी,पवनदेवता, जलदेवता चन्द्रदेवता आदि है।जीवनयापन करते हुए तूनेँ इनको कभी नमन नहीं किया।क्योंकि जो देता है वही देवता है।ये तो सभी हर क्षण हमें अपनी ऊर्जा शक्ति देते ही रहते है इसलिएये सभी जीवनदाता देव नमन करने योग्य हैं।शब्द 5.नमो नारायण- हमें भगवान कोनमन(नवण) करना चाहिए।शब्द 98. "जाकै बहुती नवणी बहुतीँ खवणी"गुरु जम्भदेव कहते है किअहंकार शुन्य जो व्यक्ति है तो उसके जीवन में अत्यधिक नम्रता आ जाती है।क्षमाशीलभी उनमें स्वाभाविक हो जाती है।गुरुजी हमेशा नेसादा व आदर्श जीवन को महत्व दिया लेकिन दुःखदबात तो यह है कि बिश्नोई समाज के अधिकतर लोग दूसरे राहों पर चल रहे हैँ। -:नवण-प्रणाम का प्रतिउत्तर:- अगर कोई कहे- "नवण-प्रणाम तो हम उसे कहते है,"जाम्भोजी ने विष्णुजी ने" हम इसके माध्यम से गुरु जाम्भोजी व विष्णुजी को याद करते है। साधारणतया हम भोजनका पहला निवाला मुँह में लेने से पूर्वविष्णुजी ने अर्पण कहते हैं। इस माध्यम से हमारा भोजन गुरु जाम्भोजी व विष्णुजी को भोग होता हैं। यह ध्यानयोग्य बातहै कि हम हमेशा भगवान को खाना ऑफर करते है और धन्यवाद कहतेहैं। और हम नवण-प्रणाम उपयोग गोर करें तो उसके जवाब में हमें दो शब्द भगवान केही लेने पङते हैं।हमारे समाज में ये कुछ अच्छे माध्यम है जिससे हम एक दिन में साधारणतया कई बार गुरु जाम्भोजी व विष्णुजी का नाम होते है।कई लोग हेल्लो ,हाय भी कहते है लेकिन यह शब्द हमें attractive तो लगता है पर इससे कुछप्राप्ति नहीं, इससे अच्छा है हम हमेशा नवण-प्रणाम ही कहे ताकि भगवान का स्मरण हो सक

वन सम्पदा का सरक्षण समय की पुकार।

°°वन सम्पदा का संरक्षण समय कि पुकार°°

वन, वनस्पति और जीव-जन्तुओं का जीवन अन्य पर आश्रित है, अतः मानव मात्र का कर्तव्य है की वनस्पति या वन-सम्पदा का विकास एवं संरक्षण करें ! ज्यों-ज्यों वन सिमटते जा रहें है, पर्यावरण प्रदूषित हो रहा है, जलवायु में विनाशकारी परिवर्तन आने लगे हैं अतः आगामी समय को मंगलकारी बनाने के लिए उच्चस्तर पर वृक्षारोपण कार्यक्रम चलाया जाना चाहिए | हमारी सभ्यता व संस्कृति वन-प्रधान रही है, इसे स्थाई व अमिट रखना हम सबका दायित्व है निवेदक::-The Bishnoism

"नारी, नारीशिक्षा और समाज"

हमारे समाज में आज भी अधिकतर नारी शिक्षा से वंचित है। ऐसा लगता है कि नारी शिक्षा, नारीत्व के लिए अभिशाप है। नारी अशिक्षित है तो इसका कारण है कि हमारे पूर्वज अशिक्षित थेइसलिए उनके ख्यालात रूढ़िवादी थे। गाँवों में स्कूलों की कमी भी थी लेकिन आज भी अधिकतर बालिका शिक्षा से वंचित है क्योंकि हम अभी भी जाग्रत नहीं हुए है। आज गाँवों कि बालिकाएं शिक्षा की कल्पना से भी अनभिज्ञ है। गाँवों में नारी का जन्म मानो निरक्षरता के अभिशाप के साथ होता है। समाज की रिती-रिवाजो और हमारी परम्पराओं ने नारी को घर की चारदीवारी तक ही सीमित कर दियाहै। बाल्यकाल से ही बालिका को घर के काम-काज व कृषि कार्य में लगा दिया जाता हैं।आज के बदलते परिवेश में नारी शिक्षा आवश्यक है। शिक्षित नारी घर के विकास की सर्वोच्चतम सीढ़ी है। नारी से ही परिवार का जन्म होता है। अशिक्षित नारी को बाल्यवस्था से लेकर मृत्युतक पूरी उम्र किसी न किसी रूप में कभीबेटी, कभी पत्नी तो कभी मां के रूप मेंकष्टपूर्ण जीवन व्यतीत करना पड़ता है। मैं दुनिया की सोच तो नहीं बदलसकता लेकिन समझदार लोग नारी शिक्षा को महत्व क्यों नहींदेते ? वर्तमान में केन्द्र व राज्य सरकारों द्वारा नारीशिक्ष ा हेतु अनेक कार्यक्रम चलाए जा रहें है लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में इसके कोई सार्थक परिणाम नहींआ रहें है। हमारे देश व समाज कि शिक्षित नारीयों से प्रेरणा लेकर हमें बालिका शिक्षा के प्रति जागरूक चाहिए व नारी शिक्षा को बढ़ावा देना चाहिए। शिक्षित नारी ही सभ्य व सुसंस्कृत समाज की नींव होती है। आज के परिवेश में हमें नारी का जीवन चारदीवारी में न सीमित कर उन्हें स्वतंत्र जीवन जीने देना चाहिए। The Bishnoism